Friday 10 June 2016

.....KUCH.....





        .....कुछ..... 

इस कुछ में बहोत कुछ समाया है ,
येह  मैं नहीं मेरा साया है। 

मुझमे "मैं " तो कहीं है ही नहीं ,
जो थोड़ा कुछ है भी वोह आप में समाया। 

जहाँ "मैं" है वहां "घमंड" है,
मैंने इस "मैं" को पिघला के खुदको हम बनाया है. 

प्यार की तलाश में भटका हूँ मैं ज़माने में,
बहोत ज़माने बाद मैंने आपको पाया है. 

बारिशों की तरह जो बरसे है आपकी आँख से आंसू,
उसमे मैंने अपना प्यार मिला के उसे शबनम बनाया है. 

                              -राणा  प्रताप सिंह  

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