Friday 5 February 2016

हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले..



हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले


हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले

न थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले।

है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या कुसूर इसमें

तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दग़ी से पहले।

मेरा प्यार जल रहा है अरे चाँद आज छुप जा

कभी प्यार था हमें भी तेरी चाँदनी से पहले।

मैं कभी न मुसकुराता जो मुझे ये इल्म होता

कि हज़ारों ग़म मिलेंगे मुझे इक खुशी से पहले।

ये अजीब इम्तिहाँ है कि तुम्हीं को भूलना है

मिले कब थे इस तरह हम तुम्हें 
बेदिली से पहले।

-Unknown





मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते


मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?

हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?

ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे

चुपके से मुझे आके सदा क्यों नहीं देते।

है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत

कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते।

गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो

हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते।

- Unknown






वो किसी का हो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये



वो किसी का हो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

दिल से आज जो गया है, उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

ज़िन्दग़ी सीम आब है कब हाथ आई है भला

मिल के भी जो खो गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

प्यार की ख़ातिर जो रोया ज़िन्दग़ी की शाम तक

ले के नफ़रत से गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

ढूँढ़कर लाया था दुनिया भर की खुशियाँ जो कभी

ढूँढ़ने ख़ुद को गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

ढूँढ़िये ‘मख़मूर’ उसको जो कहीं दुनिया में हो

दिल की तह तक जो गया है उसको क्यों कर ढूँढ़िये?

Arun Makhmoor


गली-गली तेरी याद बिछी है




गली-गली तेरी याद बिछी है, प्यार रस्ता देख के चल

मुझसे इतनी वहशत है तो मेरी हदों से से दूर निकल।

एक समय तेरा फूल-सा नाज़ुक हाथ था मेरे शानों पर

एक ये वक़्त कि मैं तनहा और दुख के काँटों का जंगल।

याद है अब तक तुझसे बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे

तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल।

मेरा मुँह क्या देख रहा है, देख उस काली रात तो देख

मैं वही तेरा हमराही हूँ, साथ मेरे चलना है तो चल।

-Unknown

पुकारती है ख़ामोशी


पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगाँ की तरह

निग़ाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल जबाँ की तरह।

जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया

बहार आई मेरे बाग़ में खिज़ाँ की तरह।

तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मीं कोई,

हमारे पाँवों में चक्कर है आसमाँ की तरह।

छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को

लगा दे आग चमन में भी आशियाँ की तरह।

हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा

हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसताँ की तरह।


 -Dagh Dehalvi

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